Source: https://www.indiatv.in/entertainment/bo ... 29-1063604बॉलीवुड की दिग्गज अदाकारा और बीजेपी सांसद हेमा मालिनी फैंस के बीच 'ड्रीम गर्ल' के नाम से भी मशहूर हैं। उन्होंने अपने करीब 6 दशक के करियर में हिंदी सिनेमा में कई बड़ी फिल्में दी हैं। शोले से लेकर रजिया सुल्तान, सत्ते पे सत्ता और अंधा कानून जैसी फिल्मों में काम कर चुकीं हेमा मालिनी ने इस मुकाम तक पहुंचने के लिए कड़ी मेहनत की और इतिहास में सुनहरे अक्षरों में अपना नाम दर्ज कराया। उन्होंने अपने करियर में कई सुपरहिट फिल्में दी हैं, जिनमें से एक अमिताभ बच्चन, सलमान खान और महिमा चौधरी स्टारर 'बागबान' भी है। हालांकि, ये बात और है कि हेमा खुद कभी ये फिल्म करना ही नहीं चाहती थीं। इस बात का खुलासा भी उन्होंने खुद ही किया था। फिर वो ये फिल्म करने के लिए कैसे राजी हुईं? चलिए आपको इसके पीछे की कहानी बताते हैं, जिसका खुलासा खुद ड्रीम गर्ल यानी हेमा मालिनी ने किया था।
बागबान करने के लिए तैयार नहीं थीं हेमा मालिनी
2003 में रिलीज हुई 'बागबान' हेमा मालिनी के करियर की बेस्ट फिल्मों में गिनी जाती है। रवि चोपड़ा द्वारा निर्देशित फिल्म में उन्होंने अमिताभ बच्चन की पत्नी का किरदार निभाया था, जो अपने बच्चों के चलते अपने पति से अलग रहने पर मजबूर हो जाती है। लेकिन, हेमा मालिनी ने तब इस फिल्म को करने से इनकार कर दिया, जब उन्हें पता चला कि इस फिल्म में उन्हें चार बड़े-बड़े लड़कों और 2 बच्चों की दादी का रोल निभाना है। वह फिल्म में अपने रोल को लेकर शुरुआत में खुश नहीं थीं, लेकिन फिर उनकी मां ने उन्हें ये मूवी करने के लिए मनाया।
चार बेटों की मां का रोल करने के लिए तैयार नहीं थीं हेमा मालिनी
भारती एस प्रधान को दिए इंटरव्यू में हेमा मालिनी ने इसका खुलासा किया था। उन्होंने बताया कि अपनी मां के कहने पर वह इस फिल्म को करने के लिए राजी हुई थीं, नहीं तो वह इस फिल्म को लगभग रिजेक्ट कर चुकी थीं। हेमा मालिनी ने इस बारे में बात करते हुए कहा था- 'बागबान के मुहूर्त से पहले बीआर चोपड़ा जी ने मुझसे मुलाकात की और कहा कि वह चाहते हैं कि बागबान में ये रोल मैं निभाऊं। उन्होंने मुझे फिल्म की कहानी भी सुनाई और मुझे लगता है कि ये उन्हीं का आशीर्वाद था कि मैं इस फिल्म में अच्छा परफॉर्म कर पाई थी। आज तक लोग इस फिल्म के बारे में बात करते हैं।'
मां को पसंद आई थी कहानीः हेमा मालिनी
हेमा मालिनी ने आगे बताया- 'मुझे याद है कि जब रवि चोपड़ा मुझे कहानी सुना रहे थे तो मेरी मां भी मेरे साथ बैठी थीं। जब रवि चले गए तो मैंने कहा- 'चार इतने बड़े लड़कों की मां का रोल करने के लिए बोल रहे हैं। मैं ये कैसे कर सकती हूं?' तब मेरी मां ने कहा, नहीं-नहीं। तुम्हें ये रोल जरूर करना चाहिए। कहानी बहुत अच्छी है।'
बागबान की कहानी
बागबान की कहानी एक ऐसे बुजुर्ग कपल के इर्द-गिर्द घूमती है, जिनकी शादी को 40 साल हो चुके हैं और दोनों एक-दूसरे से बहुत प्यार करते हैं। अमिताभ बच्चन के किरदार के रिटायर होने के बाद दोनों इस पर बात करते हैं कि वे दोनों किसके साथ रहेंगे। ऐसे में उनके चारों बच्चे कहते हैं कि कोई भी उन दोनों की साथ देखभाल नहीं कर सकता। इसलिए उन्हें अलग-अलग अपने दो-दो बेटों के साथ बारी-बारी से रहना होगा। 2003 में रिलीज हुई इस फैमिली ड्रामा ने दर्शकों को खूब रुलाया था।
बागबान की स्टार कास्ट
फिल्म में अमिताभ बच्चन और हेमा मालिनी लीड रोल में थे। इन दो दिग्गज सितारों के अलावा बागबान में समीर सोनी, अमन वर्मा, साहिल चड्ढा और नासिर खान ने इनके चार बेटों का किरदार निभाया था। इननके अलावा फिल्म में दिव्या दत्ता, सुमन रंगनाथन, रिमी सेन, परेश रावल, लिलेट दुबे, अवतार गिल, गजेंद्र चौहान और मोहन जोशी जैसे कलाकार भी दिखाई दिए थे। फिल्म में सलमान खान ने अमिताभ बच्चन के गोद लिए बेटे और महिमा चौधरी ने उनकी पत्नी का किरदार निभाया था। फिल्म में सलमान-महिमा का कैमियो था और दोनों का रोल खूब पसंद किया गया था।
'इतने बड़े चार लड़कों की मां..' बागबान करने के लिए तैयार नहीं थीं हेमा मालिनी, इस शख्स के चलते बदला फैसला
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'इतने बड़े चार लड़कों की मां..' बागबान करने के लिए तैयार नहीं थीं हेमा मालिनी, इस शख्स के चलते बदला फैसला
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Re: 'इतने बड़े चार लड़कों की मां..' बागबान करने के लिए तैयार नहीं थीं हेमा मालिनी, इस शख्स के चलते बदला फैसला
अभिनेत्री हेमा मालिनी को कौन नहीं जानता है उन्हें ड्रीम गर्ल के नाम से भी जाना जाता है उन्होंने अपने करीब 6 दशक के करियर में हिंदी सिनेमा में कई बड़ी फिल्में दी है तथा उनमें बेहतरीन प्रदर्शन किया है उन्होंने अपने कलाकारी से उन्हें सुपरहिट बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है शोले से लेकर रजिया सुल्तान सैट से सत्ता और अंधा कानून जैसी फिल्मों में काम कर चुकी हेमा मालिनी ने इस मुकाम तक पहुंचाने के लिए कड़ी मेहनत की है आज भी अपने संघर्ष एवं करी मेहनत के कारण ही इतने ऊंचे पद पर रहता था इतना नाम उन्होंने कमाया है | उनका संघर्ष काबिले तारीफ है यह हर किसी के बस की बात नहीं है परंतु उन्होंने एक महिला होते हुए भी इतना संघर्ष किया तथा आज वे जहां भी है उसी का परिणाम है कहते भी है कि संघर्ष के बिना जीवन अधूरा है |
Re: 'इतने बड़े चार लड़कों की मां..' बागबान करने के लिए तैयार नहीं थीं हेमा मालिनी, इस शख्स के चलते बदला फैसला
असल में फिल्म एक पारम्परिक माँ और बाप के ऊपर थी सही सोच कर हेमा मालिनी को लगा की माँ का किरदार निभाने से उनका ग्लैमर ख़तम हो सकता है। बाद में निर्देशक रवि चोपड़ा, निर्माता बी.आर. चोपड़ा और उनके पति धर्मेंद्र के काफी समझने पर वो स्क्रिप्ट पड़ने को मान गयी और बाद में फिल्म करने के लिए भी हाँ करदी थी।
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Re: 'इतने बड़े चार लड़कों की मां..' बागबान करने के लिए तैयार नहीं थीं हेमा मालिनी, इस शख्स के चलते बदला फैसला
हेमा मालिनी ने बताया- 'मुझे याद है कि जब रवि चोपड़ा मुझे कहानी सुना रहे थे तो मेरी मां भी मेरे साथ बैठी थीं। मैंने कहा- 'चार इतने बड़े लड़कों की मां का रोल करने के लिए बोल रहे हैं। मैं ये कैसे कर सकती हूं?' तब मेरी मां ने कहा, तुम्हें ये रोल जरूर करना चाहिए। कहानी बहुत अच्छी है।'johny888 wrote: Wed Oct 23, 2024 11:29 am असल में फिल्म एक पारम्परिक माँ और बाप के ऊपर थी सही सोच कर हेमा मालिनी को लगा की माँ का किरदार निभाने से उनका ग्लैमर ख़तम हो सकता है। बाद में निर्देशक रवि चोपड़ा, निर्माता बी.आर. चोपड़ा और उनके पति धर्मेंद्र के काफी समझने पर वो स्क्रिप्ट पड़ने को मान गयी और बाद में फिल्म करने के लिए भी हाँ करदी थी।
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Re: 'इतने बड़े चार लड़कों की मां..' बागबान करने के लिए तैयार नहीं थीं हेमा मालिनी, इस शख्स के चलते बदला फैसला
"बागबान" में हेमा मालिनी का किरदार उनके शानदार करियर का एक अहम मोड़ साबित हुआ। इस भूमिका में उनका किरदार एक ऐसी पत्नी का था, जो अपने पति और परिवार के लिए अपने अस्तित्व और मान्यताओं की लड़ाई लड़ती है।
शुरुआत में, हेमा मालिनी का इस किरदार को लेकर झिझकना स्वाभाविक था। "चार बड़े-बड़े लड़कों की मां और दादी का किरदार!"—इस विचार ने उन्हें चौंका दिया। किसी अभिनेत्री के लिए, विशेष रूप से जो "ड्रीम गर्ल" जैसे प्रतिष्ठित खिताब से जानी जाती हो, उम्रदराज और जिम्मेदार मां के किरदार को अपनाना आसान नहीं होता। लेकिन, उनकी मां का समर्थन और बीआर चोपड़ा जैसे दिग्गज फिल्मकार का विश्वास, हेमा जी को इस चुनौतीपूर्ण भूमिका के लिए तैयार करने में महत्वपूर्ण साबित हुआ।
फिल्म ने यह साबित कर दिया कि मजबूत कहानी और गहरे संवाद, किसी भी किरदार को प्रभावी बना सकते हैं। अमिताभ बच्चन के साथ उनकी केमिस्ट्री ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। हेमा मालिनी ने अपने सहज और प्रामाणिक अभिनय से हर किसी का दिल जीत लिया। इस फिल्म में उन्होंने न केवल एक मां, बल्कि एक पत्नी और महिला के रूप में अपनी जिम्मेदारियों और अधिकारों को सशक्त रूप से प्रस्तुत किया।
"बागबान" की सफलता से यह स्पष्ट हुआ कि हेमा मालिनी का फैसला सही था। यह फिल्म न केवल एक मनोरंजक फैमिली ड्रामा थी, बल्कि यह समाज के पारिवारिक मूल्यों और बुजुर्गों के प्रति जिम्मेदारी जैसे मुद्दों पर भी सवाल उठाती है।
शुरुआत में, हेमा मालिनी का इस किरदार को लेकर झिझकना स्वाभाविक था। "चार बड़े-बड़े लड़कों की मां और दादी का किरदार!"—इस विचार ने उन्हें चौंका दिया। किसी अभिनेत्री के लिए, विशेष रूप से जो "ड्रीम गर्ल" जैसे प्रतिष्ठित खिताब से जानी जाती हो, उम्रदराज और जिम्मेदार मां के किरदार को अपनाना आसान नहीं होता। लेकिन, उनकी मां का समर्थन और बीआर चोपड़ा जैसे दिग्गज फिल्मकार का विश्वास, हेमा जी को इस चुनौतीपूर्ण भूमिका के लिए तैयार करने में महत्वपूर्ण साबित हुआ।
फिल्म ने यह साबित कर दिया कि मजबूत कहानी और गहरे संवाद, किसी भी किरदार को प्रभावी बना सकते हैं। अमिताभ बच्चन के साथ उनकी केमिस्ट्री ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। हेमा मालिनी ने अपने सहज और प्रामाणिक अभिनय से हर किसी का दिल जीत लिया। इस फिल्म में उन्होंने न केवल एक मां, बल्कि एक पत्नी और महिला के रूप में अपनी जिम्मेदारियों और अधिकारों को सशक्त रूप से प्रस्तुत किया।
"बागबान" की सफलता से यह स्पष्ट हुआ कि हेमा मालिनी का फैसला सही था। यह फिल्म न केवल एक मनोरंजक फैमिली ड्रामा थी, बल्कि यह समाज के पारिवारिक मूल्यों और बुजुर्गों के प्रति जिम्मेदारी जैसे मुद्दों पर भी सवाल उठाती है।
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Re: 'इतने बड़े चार लड़कों की मां..' बागबान करने के लिए तैयार नहीं थीं हेमा मालिनी, इस शख्स के चलते बदला फैसला
"बागबान" सिर्फ एक फिल्म नहीं थी; यह भारतीय पारिवारिक ढांचे के बदलते स्वरूप का आईना थी। हेमा मालिनी और अमिताभ बच्चन जैसे दिग्गज कलाकारों ने इसे एक अद्वितीय गहराई और भावना दी।
हेमा मालिनी ने इस फिल्म को लेकर शुरुआती झिझक जाहिर की, लेकिन उनका निर्णय, इसे स्वीकार करने का, बेहद साहसिक था। यह किरदार पारंपरिक नायिका की छवि से परे था। वह सिर्फ एक ग्लैमरस अभिनेत्री नहीं थीं, बल्कि एक ऐसी अभिनेत्री थीं, जो जटिल और संवेदनशील भूमिकाओं को भी अपनाने का साहस रखती थीं।
फिल्म की कहानी बुजुर्गों के साथ परिवार के व्यवहार को बड़े ही मार्मिक ढंग से पेश करती है। हेमा जी का किरदार "पूजा" इस बात का प्रतीक है कि महिलाओं की भूमिका केवल परिवार संभालने तक सीमित नहीं है। पूजा और राज की जोड़ी दर्शकों को यह सिखाती है कि जीवन के हर पड़ाव में प्यार और सम्मान सबसे महत्वपूर्ण होता है।
हेमा जी का यह फैसला उनकी बहुमुखी प्रतिभा को दर्शाता है। उन्होंने दिखा दिया कि एक सशक्त किरदार निभाने के लिए सिर्फ उम्र नहीं, बल्कि अनुभव और भावनात्मक गहराई की आवश्यकता होती है।
हेमा मालिनी ने इस फिल्म को लेकर शुरुआती झिझक जाहिर की, लेकिन उनका निर्णय, इसे स्वीकार करने का, बेहद साहसिक था। यह किरदार पारंपरिक नायिका की छवि से परे था। वह सिर्फ एक ग्लैमरस अभिनेत्री नहीं थीं, बल्कि एक ऐसी अभिनेत्री थीं, जो जटिल और संवेदनशील भूमिकाओं को भी अपनाने का साहस रखती थीं।
फिल्म की कहानी बुजुर्गों के साथ परिवार के व्यवहार को बड़े ही मार्मिक ढंग से पेश करती है। हेमा जी का किरदार "पूजा" इस बात का प्रतीक है कि महिलाओं की भूमिका केवल परिवार संभालने तक सीमित नहीं है। पूजा और राज की जोड़ी दर्शकों को यह सिखाती है कि जीवन के हर पड़ाव में प्यार और सम्मान सबसे महत्वपूर्ण होता है।
हेमा जी का यह फैसला उनकी बहुमुखी प्रतिभा को दर्शाता है। उन्होंने दिखा दिया कि एक सशक्त किरदार निभाने के लिए सिर्फ उम्र नहीं, बल्कि अनुभव और भावनात्मक गहराई की आवश्यकता होती है।
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Re: 'इतने बड़े चार लड़कों की मां..' बागबान करने के लिए तैयार नहीं थीं हेमा मालिनी, इस शख्स के चलते बदला फैसला
"बागबान" में हेमा मालिनी का किरदार केवल एक मां की कहानी नहीं थी, बल्कि यह समाज की बदलती सोच और बुजुर्गों के प्रति व्यवहार की एक गंभीर समीक्षा थी।
शुरुआत में हेमा मालिनी का इस फिल्म को ठुकराने का निर्णय समझ में आता है। बॉलीवुड में महिलाओं के लिए ऐसी भूमिकाएं चुनना हमेशा जोखिम भरा माना गया है। लेकिन, उन्होंने अपनी मां और बीआर चोपड़ा जी के प्रोत्साहन के चलते इसे अपनाया। उनके इस फैसले ने न केवल उनके करियर को नया आयाम दिया, बल्कि यह भी साबित किया कि एक मजबूत कहानी और भूमिका, किसी भी "ड्रीम गर्ल" को एक मजबूत अभिनेत्री में बदल सकती है।
फिल्म ने परिवारों में बुजुर्गों के प्रति बदलते रवैये को बड़ी ही संवेदनशीलता से उजागर किया। हेमा जी का अभिनय इस फिल्म की आत्मा थी। उनके किरदार ने दर्शकों को भावुक किया और बुजुर्गों की उपेक्षा जैसे गंभीर मुद्दों पर सोचने को मजबूर किया।
"बागबान" की सफलता ने हेमा मालिनी को एक नई पहचान दी। इस फिल्म ने दर्शकों को यह सिखाया कि सिनेमा केवल मनोरंजन का साधन नहीं, बल्कि सामाजिक जागरूकता फैलाने का भी माध्यम हो सकता है।
शुरुआत में हेमा मालिनी का इस फिल्म को ठुकराने का निर्णय समझ में आता है। बॉलीवुड में महिलाओं के लिए ऐसी भूमिकाएं चुनना हमेशा जोखिम भरा माना गया है। लेकिन, उन्होंने अपनी मां और बीआर चोपड़ा जी के प्रोत्साहन के चलते इसे अपनाया। उनके इस फैसले ने न केवल उनके करियर को नया आयाम दिया, बल्कि यह भी साबित किया कि एक मजबूत कहानी और भूमिका, किसी भी "ड्रीम गर्ल" को एक मजबूत अभिनेत्री में बदल सकती है।
फिल्म ने परिवारों में बुजुर्गों के प्रति बदलते रवैये को बड़ी ही संवेदनशीलता से उजागर किया। हेमा जी का अभिनय इस फिल्म की आत्मा थी। उनके किरदार ने दर्शकों को भावुक किया और बुजुर्गों की उपेक्षा जैसे गंभीर मुद्दों पर सोचने को मजबूर किया।
"बागबान" की सफलता ने हेमा मालिनी को एक नई पहचान दी। इस फिल्म ने दर्शकों को यह सिखाया कि सिनेमा केवल मनोरंजन का साधन नहीं, बल्कि सामाजिक जागरूकता फैलाने का भी माध्यम हो सकता है।