सिद्धांत
हिन्दी साहित्य के विभिन्न कालों में कविता का योगदान अत्यधिक महत्वपूर्ण रहा है। कविता की प्रवृत्तियाँ समय-समय पर बदलती रही हैं, और हर काल ने अपनी विशेषताओं को प्रस्तुत किया है। हिन्दी कविता के प्रमुख आंदोलनों में 'भक्ति आंदोलन', 'रचनावादी आंदोलन', 'प्रगतिवादी आंदोलन', और 'नई कविता' का महत्वपूर्ण स्थान है।
भक्ति आंदोलन 15वीं और 16वीं शताब्दी के बीच भारतीय समाज में एक क्रांतिकारी बदलाव लाया। संतों ने भगवान के प्रति अपनी श्रद्धा और भक्ति को व्यक्त करते हुए समाज में धार्मिक और सामाजिक असमानताओं का विरोध किया। तुलसीदास, सूरदास, मीराबाई जैसे कवियों ने भक्ति के माध्यम से आम जनता में धार्मिक एकता का संदेश दिया। इन कवियों ने हिंदी कविता को एक नया आयाम दिया, जिसमें प्रेम, श्रद्धा और समाज सुधार की भावना प्रमुख थी।
प्रगतिवादी आंदोलन 20वीं शताब्दी में समाज के विभिन्न पहलुओं, जैसे सामाजिक न्याय, राजनीतिक अधिकार, और आम जनता की आवाज को उठाने की कोशिश थी। इस आंदोलन के प्रमुख कवि निराला, सुमित्रानंदन पंत, और प्रेमचंद थे। इस आंदोलन में कविता को एक साधन के रूप में देखा गया, जो समाज के हर वर्ग की आवाज़ बन सके।
नई कविता का आरंभ 1950 के दशक के मध्य हुआ। इस आंदोलन के कवियों ने कविता को शुद्ध काव्यात्मकता से बाहर निकालकर समाज और व्यक्ति की आंतरिक और बाहरी स्थितियों को चित्रित किया। गुलजार, कुमार विश्वास, और शंकर पाटिल जैसे कवि इस आंदोलन के प्रमुख रूप से जुड़े थे।
इन आंदोलनों ने हिन्दी कविता को न केवल एक नया दृष्टिकोण दिया, बल्कि इसके माध्यम से समाज में बदलाव की आवश्यकता पर भी बल दिया। कविता अब केवल कला के रूप में नहीं, बल्कि सामाजिक उद्देश्य की दिशा में भी कार्य करती है।
महत्वपूर्ण तथ्य: