भारत सरकार ने 30 अप्रैल 2025 को आगामी जनगणना में जाति आधारित आंकड़ों को शामिल करने की मंजूरी दी है। यह निर्णय सामाजिक न्याय, आरक्षण नीतियों और नीति-निर्माण में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से लिया गया है।
ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य:
ब्रिटिश शासन के दौरान 1881 से 1931 तक की जनगणनाओं में जाति आधारित आंकड़े एकत्रित किए गए थे। हालांकि, स्वतंत्र भारत में 1951 से केवल अनुसूचित जातियों (SC) और अनुसूचित जनजातियों (ST) के आंकड़े ही संकलित किए गए हैं। 2011 में सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना (SECC) की गई थी, लेकिन इसके आंकड़े सार्वजनिक नहीं किए गए।
Insights IAS
महत्व:
1. नीति निर्माण: जाति आधारित आंकड़े सामाजिक-आर्थिक असमानताओं को समझने और उन्हें दूर करने के लिए आवश्यक हैं।
2. आरक्षण नीति: सटीक आंकड़े आरक्षण की समीक्षा और पुनर्गठन में सहायक होंगे।
3. महिला आरक्षण: महिला आरक्षण के कार्यान्वयन के लिए भी यह डेटा महत्वपूर्ण है।
चुनौतियाँ:
1. प्रशासनिक जटिलता: जातियों और उप-जातियों की विविधता के कारण डेटा संग्रहण कठिन हो सकता है।
2. राजनीतिक प्रभाव: जाति आधारित आंकड़े राजनीतिक ध्रुवीकरण का कारण बन सकते हैं।
3. डेटा की सटीकता: स्व-घोषणा पर आधारित डेटा में त्रुटियाँ हो सकती हैं।
निष्कर्ष:
जाति जनगणना 2025 सामाजिक न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। हालांकि, इसके सफल कार्यान्वयन के लिए पारदर्शिता, सटीकता और राजनीतिक इच्छाशक्ति आवश्यक है। UPSC अभ्यर्थियों के लिए यह विषय सामाजिक न्याय, शासन और नीति निर्माण से संबंधित प्रश्नों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
UPSC के दृष्टिकोण से जाति जनगणना 2025: सामाजिक न्याय की ओर एक कदम
Moderators: हिंदी, janus, aakanksha24
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Re: UPSC के दृष्टिकोण से जाति जनगणना 2025: सामाजिक न्याय की ओर एक कदम
जाति आधारित जनगणना को शामिल करने का फैसला भारत में बराबरी और न्याय की दिशा में एक अहम कदम है। इससे सरकार को ये समझने में मदद मिलेगी कि कौन-कौन से समाज के लोग अब भी पीछे हैं और उन्हें क्या ज़रूरत है। इस जानकारी से सरकार शिक्षा, नौकरी और इलाज जैसी चीज़ों में ज़्यादा बेहतर फैसले ले पाएगी। खासकर महिलाओं और गरीब वर्गों के लिए मदद करना आसान होगा।