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कविता

Posted: Fri Apr 11, 2025 9:19 pm
by aakanksha24
शीर्षक – दोगला समाज
* हमारा समाज एक प्रेम विवाह स्वीकार नहीं कर सकता है ।
लेकिन बच्चे बच्चे को राधा कृष्ण की प्रेमी कहानी सुनाता है ।

हमारा समाज एक लड़की के प्रेमी को मारने के लिए संगठित हो जाता है ।
लेकिन दुष्कर्म होने पर , रोड पर मोमबत्तियां लेकर
बेबस नजर आता है ।
कहा चला जाता है खौलता हुआ खून , दुष्कर्म जैसे मामले में मोमबत्ती कैसे आ जाती है हाथो में ???

हमारा समाज स्वीकार करता है एक लड़के के 5, 6 अफेयर लेकिन एक लड़की का लड़के से दोस्ती करना उसके चरित्र को कलंकित कर देता है ये समाज ।

एक स्त्री घर छोड़ कर जाए तो वो भागी हुई , बदनाम कर दी जाती है ,
एक लड़का घर छोड़ कर जाए तो , परेशान होगा , मानसिक तनाव में होगा ।
अपनाता है ये समाज बार –बार लड़को को , सही ठहरता है उनके किए गए हर कुकर्म , कभी गलती कह कर , कभी जवानी का जोश कह कर ।

ठुकरा देता है लड़कियों को हर बार , कभी इज्जत खराब हो गई , कभी कलंकित और चरित्र हीन कह कर , कभी बेवफा कह कर ।
माफी मिलती है लड़को घर का चिरांग, वंश कह कर ।
मार दी जाती है लड़कियां , कभी चरित्र शंका पर ,कभी प्रेम विवाह पर , कभी दहेज के लिए,
कभी पुत्र प्राप्ति के लिए कोख में।

बताओ न कैसे इस समाज पर विश्वास किया जाए
जहां सिर्फ चार लोग और रिश्तेदारों के लिए बेटियां के बारे में नही सोचा जाता है।

Re: कविता

Posted: Fri Apr 11, 2025 9:22 pm
by aakanksha24
शीर्षक – मत कहो नाजुक सी कली


लड़कियों को हमेशा नाजुक सी कली क्यों समझा जाता है ?

क्यों ? लड़कियों को फूल से कम्पेयर किया ‌ जाता है ‌,
माना‌ कि हमें मासूम - सी, नाजुक -सी बना दिया है जमाने ने ,पर उस नाजुक -सी कली‌ को तोड़ने का हक क्या हर किसी को है ।

‌ जब चाहे जमाना खेल जाता है उनके ज जज़्बातों से ,कभी उनके सपनों को तोड़ा जाता है,तो कभी उनके हौसलों को, कभी उनके दिल से खेला जाता है, तो कभी उनके जिस्म से।
तो कभी - कभी उन्हें भी खत्म करने की कोशिश की जाती है।

फिर क्यों लड़कियों को नाजुक -सी कली‌ कहा जाता है ? इतना सब होने के बाद‌ भी एक फूल टूटकर बिखर जाता है।
फिर भी ये लड़कियां हिम्मत कर मजबूती के साथ उठ खड़ी हो जाती है
मत कहो ना लड़कियों को नाजुक -सी फूल की कली‌।

आकांक्षा रैकवार
सागर मध्यप्रदेश

Re: कविता

Posted: Sat Apr 12, 2025 9:46 am
by Realrider
महिला सशक्तिकरण पर एक कविता

भारत की धरती पर, एक शक्ति बसी है,
महिलाओं के हौसले में, दुनिया हिली है।
सपनों की ऊँचाइयाँ, अब तय करती हैं वो,
साहस और संघर्ष से, हर मुश्किल को हराती हैं वो।

बिना डर के निकल पड़ी हैं हर राह पर,
वो वकील, वो डॉक्टर, वो नेता, वो शिल्पकार।
शिक्षा, कला, विज्ञान, हर क्षेत्र में नाम किया,
अपने संघर्ष से, हर परंपरा को बदल दिया।

कभी घर की चार दीवारी में बंधी,
अब खुले आसमान में अपनी उड़ान भरी।
समाज की नज़रों से, अब नहीं डरती,
अपनी पहचान, वो खुद ही बनाती।

हर बेटी, हर बहन, हर माँ है सशक्त,
महिला सशक्तिकरण का, यही है सच्चा संकेत।
भारत की शान है, ये महिलाओं की शक्ति,
अब न कोई रोक सके, इनकी उन्नति की विधि।

आओ, साथ चलें, एक नई दिशा की ओर,
जहां महिलाओं का हो, सबका समान अधिकार।

Re: कविता

Posted: Sun Apr 13, 2025 1:46 pm
by johny888
वो नन्हीं सी मुस्कान में ताक़त की पहचान है,
हर कठिन राह में जो चले, वो आत्मसम्मान है।
नज़रों को झुका दे जो, वो तेज़ उसकी चाल है,
हर बंधन को तोड़ सके, वो परिवर्तन की मिसाल है।
घरों की देहलीज़ से निकल, अब गगन छूने लगी है,
कभी माँ, कभी बेटी बनकर, हर रूप में जगी है।
कलम की धार हो या खेत की मिट्टी,
हर जगह अपनी मेहनत से कहानी लिखी है सच्ची।
सशक्त नारी है तो समाज में उजाला है,
उसके बिना अधूरा हर सपना, हर आला है।

Re: कविता

Posted: Mon Apr 14, 2025 9:17 pm
by aakanksha24
शीर्षक –पता नहीं
दर्द पता नहीं ,लेकिन तकलीफ बहुत है
पैर चलना तो चाहते है लेकिन मन रुकने को कह रहा है
तकलीफ दे रहा है अंदर का शोर,मन चीख -चीख कर रोना चाहता है

ये नकली चेहरे अब मेरी बर्दाश्त के बाहर है
झूठे मौखोटे सब के उतार फेकने का मन है

कलम थक चुकी है दर्द बयां करते - करते
पन्ने आसूं से भीगे पड़े हुए है

मन सुकून की तलाश में, दिमाग उलझनों में उलझकर हारा हुआ बैठा है ।
जख्म गहरा है लेकिन मरहम जिस्म की बनी है
रूह तक कैसे जायेगी जनाब
पता नहीं ये दर्द कब तक यूं तकलीफ देगे मुझे
पता नही ........

आकांक्षा रैकवार
सागर

Re: कविता

Posted: Mon Apr 14, 2025 9:19 pm
by aakanksha24
सुनो प्रिय मित्र

तुम जैसे भी हो ,जो भी हो मेरे लिए खास हो तुम
मुझे महंगे तोहफों का कोई शौक नहीं है
मैं तुम्हारे साथ से बिताए वक्त से खुश हूं

फैशन पर मैं नही मरती , शॉपिंग मुझे कतई पसंद नहीं है
इसलिए कभी ज्यादा सोचना मत की कैसे खुश करना है
लिखने की शौकीन हूं तुम चार पन्ने एक कलम लेकर आ जाना
जिन्हे मैं अपनी भावनाओं से भरूगी
सुनो मेरी दोस्ती में मजाक ज्यादा बनोगे इसलिए
अपनी समझदारी सिर्फ दुनिया को दिखाना
मेरे लिए थोड़ा सा पागलपन जिंदा रखना बस

मदद करने की आदत है मुझे इसलिए
कभी ज्ञान मत देना की – क्या मिल जायेगा ये सब करके , भगवान मत बनो ,
मुझे ज्यादा समय अकेले रहना पसंद है
तुम मजबूर मत करना भीड़ का हिस्सा बनने को

मुझे मेरे अपनो के चेहरे मुस्कुराते हुए पसंद है
इसलिए मेरी मौत पर भी तुम रोने मत आना
दूर से ही अलविदा कह जाना ।

आकांक्षा रैकवार
सागर मध्यप्रदेश

Re: कविता

Posted: Wed Apr 30, 2025 8:38 am
by aakanksha24
शीर्षक –दायरा

दुनिया के बनाए हर दायरे को तोड़ना चाहती हूं
मैं जैसी हूं वैसा दिखना चाहती हूं , यूं सज संवर कर दुनिया के
सामने नहीं आना चाहती हूं।

थोड़ा - बहुत नही बहुत ज्यादा बदल जाना चाहती हूं।
कोई पूछे भी अब मेरा हाल तो मैं बताना नही चाहती हूं ।

नही देना चाहती हर सवाल का जवाब ,
लोगो से , समाज से बहुत दूर होना चाहती हूं ।

हर बंधन को तोड़ना चाहती हूं ,मैं अब और रिश्ते नही चाहती हूं।

किसी की बातों से दिल दुखे मैं ऐसे लोगो को अपनी
जिंदगी निकाल फेंकना चाहती हूं ।
चिल्ला चिल्ला कर रोना चाहती हूं।

मैं हर उस दायरे से बाहर आना चाहती हूं
जो बेवजह लडकियों के लिए बनाए गए है ।

आकांक्षा रैकवार
सागर मध्यप्रदेश

Re: कविता

Posted: Mon May 12, 2025 7:38 pm
by aakanksha24
मेरी मां

मेरे पास एक प्यारी सी मासूम मां है
जिन्होंने मुझे जीतने लाड़ प्यार से पाला है
उतने ही सख्त मिजाज में रह कर हर गलत काम करने ,गलत आदतों को न कहना सिखाया है ।

होती होगी औरते चालक लेकिन मेरी मां में मुझे
कभी वो चालाकी दिखी ही नही
उन्होंने तो कभी अपने हक के लिए भी आवाज नहीं उठाई
बस पूरी ईमानदारी से अपने कर्तव्य पूरी करती आई है
मैं ने अपनी मां को कभी मुहल्ले की बाकी महिलाओं की तरह चुगली करते नही देखा
न मां को किसी पड़ोसी की दहलीज पर बात करते हुए

मां के पास इतने सारे काम और जिम्मेदारियां होती है की वो उनमें ही व्यस्त रहती है
उनके पास इतना समय नहीं होता है
वो किसी के घर जाकर गप्पे करे

न इतनी फुर्सत होती है की किसी रिश्तेदार, सगे संबंधियों से घंटो फोन पर बात करे ।
मेरी मां को सिर्फ परिवार और परिवार की जिम्मेदारियां ही नज़र आती है ।
खुद चाहे कितनी भी तकलीफ में हो ,बीमार हो
लेकिन कभी आराम जैसे शब्द उनके मुंह से सुना ही नहीं है
शायद ' आराम ’ जैसे मेरी मां के लिए बनाया ही नही है भगवान ने ।

आकांक्षा रैकवार

आप सभी को मातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं