शीर्षक – दोगला समाज
* हमारा समाज एक प्रेम विवाह स्वीकार नहीं कर सकता है ।
लेकिन बच्चे बच्चे को राधा कृष्ण की प्रेमी कहानी सुनाता है ।
हमारा समाज एक लड़की के प्रेमी को मारने के लिए संगठित हो जाता है ।
लेकिन दुष्कर्म होने पर , रोड पर मोमबत्तियां लेकर
बेबस नजर आता है ।
कहा चला जाता है खौलता हुआ खून , दुष्कर्म जैसे मामले में मोमबत्ती कैसे आ जाती है हाथो में ???
हमारा समाज स्वीकार करता है एक लड़के के 5, 6 अफेयर लेकिन एक लड़की का लड़के से दोस्ती करना उसके चरित्र को कलंकित कर देता है ये समाज ।
एक स्त्री घर छोड़ कर जाए तो वो भागी हुई , बदनाम कर दी जाती है ,
एक लड़का घर छोड़ कर जाए तो , परेशान होगा , मानसिक तनाव में होगा ।
अपनाता है ये समाज बार –बार लड़को को , सही ठहरता है उनके किए गए हर कुकर्म , कभी गलती कह कर , कभी जवानी का जोश कह कर ।
ठुकरा देता है लड़कियों को हर बार , कभी इज्जत खराब हो गई , कभी कलंकित और चरित्र हीन कह कर , कभी बेवफा कह कर ।
माफी मिलती है लड़को घर का चिरांग, वंश कह कर ।
मार दी जाती है लड़कियां , कभी चरित्र शंका पर ,कभी प्रेम विवाह पर , कभी दहेज के लिए,
कभी पुत्र प्राप्ति के लिए कोख में।
बताओ न कैसे इस समाज पर विश्वास किया जाए
जहां सिर्फ चार लोग और रिश्तेदारों के लिए बेटियां के बारे में नही सोचा जाता है।
कविता
Moderators: हिंदी, janus, aakanksha24
Forum rules
हिन्दी डिस्कशन फोरम में पोस्टिंग एवं पेमेंट के लिए नियम with effect from 18.12.2024
1. यह कोई paid to post forum नहीं है। हम हिंदी को प्रोत्साहन देने के लिये कुछ आयोजन करते हैं और पुरस्कार भी उसी के अंतर्गत दिए जाते हैं। अभी निम्न आयोजन चल रहा है
viewtopic.php?t=4052
2. अधिकतम पेमेंट प्रति सदस्य -रुपये 1000 (एक हजार मात्र) पाक्षिक (हर 15 दिन में)।
3. अगर कोई सदस्य एक हजार से ज्यादा रुपये की पोस्टिग करता है, तो बचे हुए रुपये का बैलन्स forward हो जाएगा और उनके account में जुड़ता चला जाएआ।
4. सदस्यों द्वारा करी गई प्रत्येक पोस्टिंग का मौलिक एवं अर्थपूर्ण होना अपेक्षित है।
5. पेमेंट के पहले प्रत्येक सदस्य की postings की random checking होती है। इस दौरान यदि उनकी postings में copy /paste अथवा अनर्थपूर्ण content की मात्रा अधिक/अनुचित पाई जाती है, तो उन्हें एक रुपये प्रति पोस्ट के हिसाब से पेमेंट किया जाएगा।
6. अगर किसी सदस्य की postings में नियमित रूप से copy /paste अथवा अनर्थपूर्ण content की मात्रा अधिक/अनुचित पाई जाती है, तो उसका account deactivate होने की प्रबल संभावना है।
7. किसी भी विवादित स्थिति में हिन्दी डिस्कशन फोरम संयुक्त परिवार के management द्वारा लिया गया निर्णय अंतिम एवं सर्वमान्य होगा।
8. यह फोरम एवं इसमे आयोजित सारी प्रतियोगिताएं हिन्दी प्रेमियों द्वारा, हिन्दी प्रेमियों के लिए, सुभावना लिए, प्रेम से किया गया प्रयास मात्र है। यदि इसे इसी भावना से लिया जाए, तो हमारा विश्वास है की कोई विशेष समस्या नहीं आएगी।
यदि फिर भी .. तो कृपया हमसे संपर्क साधें। आपकी समस्या का उचित निवारण करने का यथासंभव प्रयास करने हेतु हम कटिबद्ध है।
हिन्दी डिस्कशन फोरम में पोस्टिंग एवं पेमेंट के लिए नियम with effect from 18.12.2024
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5. पेमेंट के पहले प्रत्येक सदस्य की postings की random checking होती है। इस दौरान यदि उनकी postings में copy /paste अथवा अनर्थपूर्ण content की मात्रा अधिक/अनुचित पाई जाती है, तो उन्हें एक रुपये प्रति पोस्ट के हिसाब से पेमेंट किया जाएगा।
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- अर्ध शतक .... पूर्ण !!
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- Joined: Sat Sep 07, 2024 1:10 pm
Re: कविता
शीर्षक – मत कहो नाजुक सी कली
लड़कियों को हमेशा नाजुक सी कली क्यों समझा जाता है ?
क्यों ? लड़कियों को फूल से कम्पेयर किया जाता है ,
माना कि हमें मासूम - सी, नाजुक -सी बना दिया है जमाने ने ,पर उस नाजुक -सी कली को तोड़ने का हक क्या हर किसी को है ।
जब चाहे जमाना खेल जाता है उनके ज जज़्बातों से ,कभी उनके सपनों को तोड़ा जाता है,तो कभी उनके हौसलों को, कभी उनके दिल से खेला जाता है, तो कभी उनके जिस्म से।
तो कभी - कभी उन्हें भी खत्म करने की कोशिश की जाती है।
फिर क्यों लड़कियों को नाजुक -सी कली कहा जाता है ? इतना सब होने के बाद भी एक फूल टूटकर बिखर जाता है।
फिर भी ये लड़कियां हिम्मत कर मजबूती के साथ उठ खड़ी हो जाती है
मत कहो ना लड़कियों को नाजुक -सी फूल की कली।
आकांक्षा रैकवार
सागर मध्यप्रदेश
लड़कियों को हमेशा नाजुक सी कली क्यों समझा जाता है ?
क्यों ? लड़कियों को फूल से कम्पेयर किया जाता है ,
माना कि हमें मासूम - सी, नाजुक -सी बना दिया है जमाने ने ,पर उस नाजुक -सी कली को तोड़ने का हक क्या हर किसी को है ।
जब चाहे जमाना खेल जाता है उनके ज जज़्बातों से ,कभी उनके सपनों को तोड़ा जाता है,तो कभी उनके हौसलों को, कभी उनके दिल से खेला जाता है, तो कभी उनके जिस्म से।
तो कभी - कभी उन्हें भी खत्म करने की कोशिश की जाती है।
फिर क्यों लड़कियों को नाजुक -सी कली कहा जाता है ? इतना सब होने के बाद भी एक फूल टूटकर बिखर जाता है।
फिर भी ये लड़कियां हिम्मत कर मजबूती के साथ उठ खड़ी हो जाती है
मत कहो ना लड़कियों को नाजुक -सी फूल की कली।
आकांक्षा रैकवार
सागर मध्यप्रदेश
Re: कविता
महिला सशक्तिकरण पर एक कविता
भारत की धरती पर, एक शक्ति बसी है,
महिलाओं के हौसले में, दुनिया हिली है।
सपनों की ऊँचाइयाँ, अब तय करती हैं वो,
साहस और संघर्ष से, हर मुश्किल को हराती हैं वो।
बिना डर के निकल पड़ी हैं हर राह पर,
वो वकील, वो डॉक्टर, वो नेता, वो शिल्पकार।
शिक्षा, कला, विज्ञान, हर क्षेत्र में नाम किया,
अपने संघर्ष से, हर परंपरा को बदल दिया।
कभी घर की चार दीवारी में बंधी,
अब खुले आसमान में अपनी उड़ान भरी।
समाज की नज़रों से, अब नहीं डरती,
अपनी पहचान, वो खुद ही बनाती।
हर बेटी, हर बहन, हर माँ है सशक्त,
महिला सशक्तिकरण का, यही है सच्चा संकेत।
भारत की शान है, ये महिलाओं की शक्ति,
अब न कोई रोक सके, इनकी उन्नति की विधि।
आओ, साथ चलें, एक नई दिशा की ओर,
जहां महिलाओं का हो, सबका समान अधिकार।
भारत की धरती पर, एक शक्ति बसी है,
महिलाओं के हौसले में, दुनिया हिली है।
सपनों की ऊँचाइयाँ, अब तय करती हैं वो,
साहस और संघर्ष से, हर मुश्किल को हराती हैं वो।
बिना डर के निकल पड़ी हैं हर राह पर,
वो वकील, वो डॉक्टर, वो नेता, वो शिल्पकार।
शिक्षा, कला, विज्ञान, हर क्षेत्र में नाम किया,
अपने संघर्ष से, हर परंपरा को बदल दिया।
कभी घर की चार दीवारी में बंधी,
अब खुले आसमान में अपनी उड़ान भरी।
समाज की नज़रों से, अब नहीं डरती,
अपनी पहचान, वो खुद ही बनाती।
हर बेटी, हर बहन, हर माँ है सशक्त,
महिला सशक्तिकरण का, यही है सच्चा संकेत।
भारत की शान है, ये महिलाओं की शक्ति,
अब न कोई रोक सके, इनकी उन्नति की विधि।
आओ, साथ चलें, एक नई दिशा की ओर,
जहां महिलाओं का हो, सबका समान अधिकार।
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- या खुदा ! एक हज R !!! पोस्टर महा लपक के वाले !!!
- Posts: 1873
- Joined: Sun Oct 13, 2024 12:32 am
Re: कविता
वो नन्हीं सी मुस्कान में ताक़त की पहचान है,
हर कठिन राह में जो चले, वो आत्मसम्मान है।
नज़रों को झुका दे जो, वो तेज़ उसकी चाल है,
हर बंधन को तोड़ सके, वो परिवर्तन की मिसाल है।
घरों की देहलीज़ से निकल, अब गगन छूने लगी है,
कभी माँ, कभी बेटी बनकर, हर रूप में जगी है।
कलम की धार हो या खेत की मिट्टी,
हर जगह अपनी मेहनत से कहानी लिखी है सच्ची।
सशक्त नारी है तो समाज में उजाला है,
उसके बिना अधूरा हर सपना, हर आला है।
हर कठिन राह में जो चले, वो आत्मसम्मान है।
नज़रों को झुका दे जो, वो तेज़ उसकी चाल है,
हर बंधन को तोड़ सके, वो परिवर्तन की मिसाल है।
घरों की देहलीज़ से निकल, अब गगन छूने लगी है,
कभी माँ, कभी बेटी बनकर, हर रूप में जगी है।
कलम की धार हो या खेत की मिट्टी,
हर जगह अपनी मेहनत से कहानी लिखी है सच्ची।
सशक्त नारी है तो समाज में उजाला है,
उसके बिना अधूरा हर सपना, हर आला है।
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- अर्ध शतक .... पूर्ण !!
- Posts: 63
- Joined: Sat Sep 07, 2024 1:10 pm
Re: कविता
शीर्षक –पता नहीं
दर्द पता नहीं ,लेकिन तकलीफ बहुत है
पैर चलना तो चाहते है लेकिन मन रुकने को कह रहा है
तकलीफ दे रहा है अंदर का शोर,मन चीख -चीख कर रोना चाहता है
ये नकली चेहरे अब मेरी बर्दाश्त के बाहर है
झूठे मौखोटे सब के उतार फेकने का मन है
कलम थक चुकी है दर्द बयां करते - करते
पन्ने आसूं से भीगे पड़े हुए है
मन सुकून की तलाश में, दिमाग उलझनों में उलझकर हारा हुआ बैठा है ।
जख्म गहरा है लेकिन मरहम जिस्म की बनी है
रूह तक कैसे जायेगी जनाब
पता नहीं ये दर्द कब तक यूं तकलीफ देगे मुझे
पता नही ........
आकांक्षा रैकवार
सागर
दर्द पता नहीं ,लेकिन तकलीफ बहुत है
पैर चलना तो चाहते है लेकिन मन रुकने को कह रहा है
तकलीफ दे रहा है अंदर का शोर,मन चीख -चीख कर रोना चाहता है
ये नकली चेहरे अब मेरी बर्दाश्त के बाहर है
झूठे मौखोटे सब के उतार फेकने का मन है
कलम थक चुकी है दर्द बयां करते - करते
पन्ने आसूं से भीगे पड़े हुए है
मन सुकून की तलाश में, दिमाग उलझनों में उलझकर हारा हुआ बैठा है ।
जख्म गहरा है लेकिन मरहम जिस्म की बनी है
रूह तक कैसे जायेगी जनाब
पता नहीं ये दर्द कब तक यूं तकलीफ देगे मुझे
पता नही ........
आकांक्षा रैकवार
सागर
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- अर्ध शतक .... पूर्ण !!
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- Joined: Sat Sep 07, 2024 1:10 pm
Re: कविता
सुनो प्रिय मित्र
तुम जैसे भी हो ,जो भी हो मेरे लिए खास हो तुम
मुझे महंगे तोहफों का कोई शौक नहीं है
मैं तुम्हारे साथ से बिताए वक्त से खुश हूं
फैशन पर मैं नही मरती , शॉपिंग मुझे कतई पसंद नहीं है
इसलिए कभी ज्यादा सोचना मत की कैसे खुश करना है
लिखने की शौकीन हूं तुम चार पन्ने एक कलम लेकर आ जाना
जिन्हे मैं अपनी भावनाओं से भरूगी
सुनो मेरी दोस्ती में मजाक ज्यादा बनोगे इसलिए
अपनी समझदारी सिर्फ दुनिया को दिखाना
मेरे लिए थोड़ा सा पागलपन जिंदा रखना बस
मदद करने की आदत है मुझे इसलिए
कभी ज्ञान मत देना की – क्या मिल जायेगा ये सब करके , भगवान मत बनो ,
मुझे ज्यादा समय अकेले रहना पसंद है
तुम मजबूर मत करना भीड़ का हिस्सा बनने को
मुझे मेरे अपनो के चेहरे मुस्कुराते हुए पसंद है
इसलिए मेरी मौत पर भी तुम रोने मत आना
दूर से ही अलविदा कह जाना ।
आकांक्षा रैकवार
सागर मध्यप्रदेश
तुम जैसे भी हो ,जो भी हो मेरे लिए खास हो तुम
मुझे महंगे तोहफों का कोई शौक नहीं है
मैं तुम्हारे साथ से बिताए वक्त से खुश हूं
फैशन पर मैं नही मरती , शॉपिंग मुझे कतई पसंद नहीं है
इसलिए कभी ज्यादा सोचना मत की कैसे खुश करना है
लिखने की शौकीन हूं तुम चार पन्ने एक कलम लेकर आ जाना
जिन्हे मैं अपनी भावनाओं से भरूगी
सुनो मेरी दोस्ती में मजाक ज्यादा बनोगे इसलिए
अपनी समझदारी सिर्फ दुनिया को दिखाना
मेरे लिए थोड़ा सा पागलपन जिंदा रखना बस
मदद करने की आदत है मुझे इसलिए
कभी ज्ञान मत देना की – क्या मिल जायेगा ये सब करके , भगवान मत बनो ,
मुझे ज्यादा समय अकेले रहना पसंद है
तुम मजबूर मत करना भीड़ का हिस्सा बनने को
मुझे मेरे अपनो के चेहरे मुस्कुराते हुए पसंद है
इसलिए मेरी मौत पर भी तुम रोने मत आना
दूर से ही अलविदा कह जाना ।
आकांक्षा रैकवार
सागर मध्यप्रदेश
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- अर्ध शतक .... पूर्ण !!
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- Joined: Sat Sep 07, 2024 1:10 pm
Re: कविता
शीर्षक –दायरा
दुनिया के बनाए हर दायरे को तोड़ना चाहती हूं
मैं जैसी हूं वैसा दिखना चाहती हूं , यूं सज संवर कर दुनिया के
सामने नहीं आना चाहती हूं।
थोड़ा - बहुत नही बहुत ज्यादा बदल जाना चाहती हूं।
कोई पूछे भी अब मेरा हाल तो मैं बताना नही चाहती हूं ।
नही देना चाहती हर सवाल का जवाब ,
लोगो से , समाज से बहुत दूर होना चाहती हूं ।
हर बंधन को तोड़ना चाहती हूं ,मैं अब और रिश्ते नही चाहती हूं।
किसी की बातों से दिल दुखे मैं ऐसे लोगो को अपनी
जिंदगी निकाल फेंकना चाहती हूं ।
चिल्ला चिल्ला कर रोना चाहती हूं।
मैं हर उस दायरे से बाहर आना चाहती हूं
जो बेवजह लडकियों के लिए बनाए गए है ।
आकांक्षा रैकवार
सागर मध्यप्रदेश
दुनिया के बनाए हर दायरे को तोड़ना चाहती हूं
मैं जैसी हूं वैसा दिखना चाहती हूं , यूं सज संवर कर दुनिया के
सामने नहीं आना चाहती हूं।
थोड़ा - बहुत नही बहुत ज्यादा बदल जाना चाहती हूं।
कोई पूछे भी अब मेरा हाल तो मैं बताना नही चाहती हूं ।
नही देना चाहती हर सवाल का जवाब ,
लोगो से , समाज से बहुत दूर होना चाहती हूं ।
हर बंधन को तोड़ना चाहती हूं ,मैं अब और रिश्ते नही चाहती हूं।
किसी की बातों से दिल दुखे मैं ऐसे लोगो को अपनी
जिंदगी निकाल फेंकना चाहती हूं ।
चिल्ला चिल्ला कर रोना चाहती हूं।
मैं हर उस दायरे से बाहर आना चाहती हूं
जो बेवजह लडकियों के लिए बनाए गए है ।
आकांक्षा रैकवार
सागर मध्यप्रदेश