वास्तविक चुटकुला:
दिसंबर 2008 में, मैं अपने मित्र अमित निगम के साथ इंदौर से दिल्ली आया, बचपन के मित्र चंदन पाण्डेय जी के रूम पर।
अगले महीने 31 तारीख थी, जेब सबकी खाली। गैस भरवाने को पैसे नहीं...अब क्या किया जाए
पड़ोस में मैरिज हाल में शादी में जाना तय किया गया, संज संवर कर पहुंचा गए हम तीनों।
मित्र चंदन जो पहले से रहते थे, तेज तर्राख

बनते हुए रसगुल्ले खाने चले गए, मैं अमित निगम के साथ पानी पूरी खाने लगा।
चंदन जी आएं तिरछी जबान से बताएं कि रसगुल्ला कमाल का है और जोर देते हुए अमित निगम को भी लालच दे दिए रसगुल्ले का।
फिर अमित जी 4 रसगुल्ला लेकर आए लेकिन मैं चाट खाने में व्यस्त था। कुछ हुआ तो चंदन जी ने अमित का हाथ दबाया जिससे अमित भी वाह वाह करने लगे।
फिर मैं भी 3 रसगुल्ला प्लेट में लाया।
ये दोनों मुझे एक टक देख रहे थे की मैं कैसे कब खाऊंगा
दिसंबर में हाथ में रखने पर पता नहीं चला जब पहला रसगुल्ला पूरा मुंह में डाला खौलने चासनी से लबालब रसगुल्ला....तो पूरा जीभ जल गया तब पूरी बात मुझे समझ में आई।
भूख सबको बहुत तेज लगी थी और लाजवाब रसगुल्ला देख के पूरा जलता हुआ रसगुल्ला एक बार में मुंह में डालने पर ना निगलते बने, ना खाते बने।
समय के अभाव में वर–वधु को देखने का मौका नहीं मिला तो आशीर्वाद देना दूर की बात थी। ना ही पता चल पाया की शादी किसकी थी
पेट में अगले दिन भर का स्टॉक रख के हम वापिस चले आए रूम पर। मैं पैकिंग का एक अच्छा विचार भी सोचा जो सबने मना कर दिया की चप्पल पड़ेगा बेटा अब।
उसके बाद सबने कान पकड़ लिया। रात भर वही याद कर कर के खूब हसीं हुई। अभी भी वो रसगुल्ला नहीं भूलता।
"जो भरा नहीं है भावों से, जिसमें बहती रसधार नहीं, वह हृदय नहीं पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं"