सोमवार की बेचैनी

मौज, मस्ती, चिल मारो (मर्यादित)

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Anil
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Re: सोमवार की बेचैनी

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हमें आज भी याद है जब संडे आता था और जब मंडे आता था तो स्कूल जाने के लिए सुबह जल्दी तैयार होना पड़ता था और लगता था पूरा दिन खेलने के बाद मंडे कब आ जाता था पता ही नहीं लगता था वह दिन अलग थे

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Deepika sharma
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Re: सोमवार की बेचैनी

Post by Deepika sharma »

शनिवार के दिन स्कूल की छुट्टी होने के बाद स्कूल से घर आते टाइम यही सोचते थे कल तो संडे है आराम से सोएंगे और खूब मस्ती करेंगे पूरे दिन इंजॉय करते थे और कब सुबह से शाम हो जाती थी पता नहीं चलता था जब दूसरे दिन मंडे होता था तो लगता था कि कल से फिर स्कूल जाना वही रोज स्कूल वहीं पढ़ाई... अभी वही हाल हहै बड़े होने के बाद अब ऑफिस के लिए मंडे को सुबह जल्दी जगना पड़ता है जो जो घर पर काम करने वाली महिलाओ के लिए क्या रविवार क्या सोमवार है उनके लिए तो सब बराबर h
Anil
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Re: सोमवार की बेचैनी

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Warrior wrote: Mon Nov 18, 2024 5:35 pm हां... शनिवार कई लोगों के लिए सबसे अच्छा होगा... लेकिन मेरे लिए, शुक्रवार रात सबसे अच्छी होती है, दरअसल मैं पूरी शुक्रवार रात फिल्में देखना पसंद करता हूं... रविवार शाम से मेरी बैटरी डाउन होनी शुरू हो जाती है, सोमवार के बारे में सोचते हुए।
आपने सही कहा सर जी सोमवार की तो बात ही अलग थी सुबह-सुबह जल्दी जगना और स्कूल के लिए के लिए तैयार होना संडे के बाद मंडे के दिन बहुत याद आते हैं
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Re: सोमवार की बेचैनी

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Warrior wrote: Mon Nov 18, 2024 5:35 pm हां... शनिवार कई लोगों के लिए सबसे अच्छा होगा... लेकिन मेरे लिए, शुक्रवार रात सबसे अच्छी होती है, दरअसल मैं पूरी शुक्रवार रात फिल्में देखना पसंद करता हूं... रविवार शाम से मेरी बैटरी डाउन होनी शुरू हो जाती है, सोमवार के बारे में सोचते हुए।
शुक्रवार को रात को 11:00 दूरदर्शन पर पहले आर्ट मूवीस आया करती थी। और रविवार को दूरदर्शन पर फिल्म आया करती थी। हां यह बात ठीक है कि रविवार की शाम को सोमवार की तैयारी करनी होती है तो वह समय तो टेंशन में ही गुजर जाता है। हां शुक्रवार को आर्ट मूवी देखने का बड़ा मजा आता था।
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Re: सोमवार की बेचैनी

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Anil wrote: Mon Dec 02, 2024 8:22 pm
Warrior wrote: Mon Nov 18, 2024 5:35 pm हां... शनिवार कई लोगों के लिए सबसे अच्छा होगा... लेकिन मेरे लिए, शुक्रवार रात सबसे अच्छी होती है, दरअसल मैं पूरी शुक्रवार रात फिल्में देखना पसंद करता हूं... रविवार शाम से मेरी बैटरी डाउन होनी शुरू हो जाती है, सोमवार के बारे में सोचते हुए।
आपने सही कहा सर जी सोमवार की तो बात ही अलग थी सुबह-सुबह जल्दी जगना और स्कूल के लिए के लिए तैयार होना संडे के बाद मंडे के दिन बहुत याद आते हैं
यह मंडे की बेचैनी तो संडे को भी एंजॉय नहीं करने देती। हां बस इतना जरूर है कि संडे को थोड़ा लेट उठते हैं लेकिन कई पेंडिंग का मैसेज पड़े होते हैं जो मंडे को कंप्लीट करके देने होते हैं इसीलिए मंडे की टेंशन संडे पर भारी पड़ जाती है।
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Re: सोमवार की बेचैनी

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Deepika sharma wrote: Mon Dec 02, 2024 8:14 pm शनिवार के दिन स्कूल की छुट्टी होने के बाद स्कूल से घर आते टाइम यही सोचते थे कल तो संडे है आराम से सोएंगे और खूब मस्ती करेंगे पूरे दिन इंजॉय करते थे और कब सुबह से शाम हो जाती थी पता नहीं चलता था जब दूसरे दिन मंडे होता था तो लगता था कि कल से फिर स्कूल जाना वही रोज स्कूल वहीं पढ़ाई... अभी वही हाल हहै बड़े होने के बाद अब ऑफिस के लिए मंडे को सुबह जल्दी जगना पड़ता है जो जो घर पर काम करने वाली महिलाओ के लिए क्या रविवार क्या सोमवार है उनके लिए तो सब बराबर h
यह बिल्कुल सही बात बोली आपने की जो घरेलू महिलाएं हैं ग्रहणियां उनके लिए क्या रविवार और क्या सोमवार बल्कि उनको तो रविवार को अधिक काम करना पड़ता है क्योंकि सब घर में होते हैं और अपनी अपनी फरमाइश है करते रहते हैं तो उन्हें तो उसे दिन आराम भी करने को नहीं मिलता।
Sarita
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Re: सोमवार की बेचैनी

Post by Sarita »

रविवार के दिन घर का काम करके फ्री होते हैं सबसे बड़ी टेंशन सोमवार को होती है बच्चे स्कूल जाएंगे उनकी यूनिफॉर्म लंच बॉक्स सारे समय से समय सेट रखना समय से तैयार करना हस्बैंड ऑफिस जाएंगे उनका भी ध्यान रखना समय से हर काम देना सोमवार से शनिवार कब हो जाता है सबसे बड़ी टेंशन यही होती है फिर सोमवार आता है रिपीट रिपीट काम का हम जैसी औरतों के लिए ना कोई सोमवार ना मंगल हर टाइम टेंशन टेंशन
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Re: सोमवार की बेचैनी

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Suraj koli wrote: Sun Dec 01, 2024 9:04 pm सोमवार की बेचैनी कुछ बचपन के दिन याद दिलाते हैं के संडे के बाद अब मंडे आने वाला है तो कल स्कूल जाना पड़ेगा मंडे की बेचैनी उन बच्चों से पूछो जो आज भी रो रो के स्कूल जाते हैं वह बचपन के दिन मुझे बहुत याद आते हैं वह भी क्या दिन थे 🥺🥺🥺
हां बिल्कुल कई बच्चे तो मंडे का नाम सुनकर ही रोने लग जाते हैं और सैटरडे वाले दिन जब घर आते हैं तो गाना गाते हैं संडे है छुट्टी है संडे है छुट्टी है और संडे को बड़ी मस्त रहते हैं घर में ।मंडे को फिर से वही रोना धोना शुरू हो जाता है कि स्कूल जाना पड़ेगा लेकिन कई बच्चे बड़े खुश होकर स्कूल जाते हैं मंडे को एक नई शुरुआत के तौर पर।
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Re: सोमवार की बेचैनी

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Suraj koli wrote: Sun Dec 01, 2024 9:09 pm अगर सोचा जाए तो सोमवार से भी नई शुरुआत होती है जैसे की तो सोमवार से हमारी स्कूल में नाइस सब्जेक्ट चालू होते थे और उन्हीं के साथ ही वह दिन भी मुझे याद है जिन दिनों सोमवार को हमारी कॉपी चेक होती थी हमें मार भी पड़ती थी वह सोमवार में बोलूंगा नहीं सोमवार की तो बात ही अलग है
जब हम b.ed कर रहे थे तब सोमवार को हमारी असेंबली होती थी और असेंबली हमें बहुत पसंद थी क्योंकि वह हफ्ते में एक ही बार होती थी। शनिवार को हम अपने घर आ जाते थे और सोमवार की सुबह बस पकड़ के हमें कॉलेज जाना होता था काफी भाग दौड़ तो होती थी लेकिन फिर भी सोमवार हमें पसंद था बस उसी असेंबली के कारण।
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Re: सोमवार की बेचैनी

Post by Suraj koli »

आपका मंडे तो इतना बेकार जाता है क्योंकि अब वह पहले वाला मंडे तू अभी बेचैनी देता है की नहीं अब तो सुकून मिलता है तो बस एक संडे में है वह भी यह सोचकर कि चलो आज की ऑफिस की छुट्टी है तो थोड़ा आराम करेंगे वह भी नसीब नहीं होता हर किसी को क्योंकि कोई कपड़े धोने में बिजी तो किसी को खाना बनाने में तू कौन-कौन बाहर रहकर खान और कपड़े खुद धोते हैं
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