johny888 wrote: Thu Oct 24, 2024 12:41 pm
सही बात है पहले के दिनों में सही हमारी लिए एमोजिस का रोले निभाते थे अब तो डिजिटल वर्ल्ड ने हर जगह अपने पैर पसार दिए है। अब तो हम अपने दोस्तों से ठीक से मिल भी नहीं पाते, व्हाट्सप्प या किसी और सोशल मीडिया के माध्यम से मिलना हो जाता है और बड़े त्यौहार पर भी नहीं हो पता मिलना। डेरी मिल्क के एक ऐड में इसी को बताया था कहते है टेक्नोलॉजी इतनी भी तरक्की नहीं की है की गले मिल कर बधाई या शुबकामनाएं देने में सक्षम हो गयी हो।
याद आता है वो पुराना वक्त, तो उस याद में खो जाता हूँ ! कहाँ गयी वो बचपन की अठखेलियाँ, कहाँ गया वो अपनों का प्यार ! कहाँ गयी वो थोड़े की खुशियां, कहाँ गया वो मेरा प्यारा संसार
यह दौलत भी ले लो यह शोहरत भी ले लो भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी
मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन वह कागज की कश्ती वो बारिश का पानी
कड़ी धूप में अपने घर से निकलना वह चिड़िया वह बुलबुल वह तितली पकड़ना
गुड़िया की शादी पर लड़ना झगड़ना वह झूलों से गिरना वह गिरकर संभालना
भुलाए नहीं भूल सकता है कोई वो छोटी सी रातें वो लंबी कहानी
वह कागज की कश्ती वो बारिश का पानी....
johny888 wrote: Thu Oct 24, 2024 12:41 pm
सही बात है पहले के दिनों में सही हमारी लिए एमोजिस का रोले निभाते थे अब तो डिजिटल वर्ल्ड ने हर जगह अपने पैर पसार दिए है। अब तो हम अपने दोस्तों से ठीक से मिल भी नहीं पाते, व्हाट्सप्प या किसी और सोशल मीडिया के माध्यम से मिलना हो जाता है और बड़े त्यौहार पर भी नहीं हो पता मिलना। डेरी मिल्क के एक ऐड में इसी को बताया था कहते है टेक्नोलॉजी इतनी भी तरक्की नहीं की है की गले मिल कर बधाई या शुबकामनाएं देने में सक्षम हो गयी हो।
याद आता है वो पुराना वक्त, तो उस याद में खो जाता हूँ ! कहाँ गयी वो बचपन की अठखेलियाँ, कहाँ गया वो अपनों का प्यार ! कहाँ गयी वो थोड़े की खुशियां, कहाँ गया वो मेरा प्यारा संसार
यह दौलत भी ले लो यह शोहरत भी ले लो भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी
मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन वह कागज की कश्ती वो बारिश का पानी
कड़ी धूप में अपने घर से निकलना वह चिड़िया वह बुलबुल वह तितली पकड़ना
गुड़िया की शादी पर लड़ना झगड़ना वह झूलों से गिरना वह गिरकर संभालना
भुलाए नहीं भूल सकता है कोई वो छोटी सी रातें वो लंबी कहानी
वह कागज की कश्ती वो बारिश का पानी....
पंछियो की चहचआहट, वो मुर्गे की कलगी में आँख का खुल जाना !
वो प्यार की दोस्ती, प्यार की रिश्तेदारी, वो नासमझी वो लाचारी !
वो इंसानो की इंसानियत, उस गरीबी में भी संतुष्ट जीवन पाता हूँ !
याद आता है वो पुराना वक्त, तो उस याद में खो जाता हूँ !
वो दिन का व्यस्तता से शुरू होना, वो साँझ का व्यस्तता में बीत जाना !
वो सुबह की ताज़ी हवा, वो सूरज का निकलना और फिर साँझ में समां जाना !
वो प्यार भरी नानी की गालियां, उन गालियों में बहुत प्यार पाता हूँ !
याद आता है वो पुराना वक्त, तो उस याद में खो जाता हूँ !
वो पड़ोसियों का अपनापन, वो रिश्तेदारों का प्यार, और वो संयुक्त परिवार !
वो घर में गाय का दूध, वो घर की सब्जियाँ, वो घर का बना अचार !
वो चाचा की पढाई अंग्रेजी, पापा का गणित, आज भी याद कर पाता हूँ !
याद आता है वो पुराना वक्त, तो उस याद में खो जाता हूँ !
johny888 wrote: Thu Oct 24, 2024 12:41 pm
सही बात है पहले के दिनों में सही हमारी लिए एमोजिस का रोले निभाते थे अब तो डिजिटल वर्ल्ड ने हर जगह अपने पैर पसार दिए है। अब तो हम अपने दोस्तों से ठीक से मिल भी नहीं पाते, व्हाट्सप्प या किसी और सोशल मीडिया के माध्यम से मिलना हो जाता है और बड़े त्यौहार पर भी नहीं हो पता मिलना। डेरी मिल्क के एक ऐड में इसी को बताया था कहते है टेक्नोलॉजी इतनी भी तरक्की नहीं की है की गले मिल कर बधाई या शुबकामनाएं देने में सक्षम हो गयी हो।
याद आता है वो पुराना वक्त, तो उस याद में खो जाता हूँ ! कहाँ गयी वो बचपन की अठखेलियाँ, कहाँ गया वो अपनों का प्यार ! कहाँ गयी वो थोड़े की खुशियां, कहाँ गया वो मेरा प्यारा संसार
यह दौलत भी ले लो यह शोहरत भी ले लो भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी
मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन वह कागज की कश्ती वो बारिश का पानी
कड़ी धूप में अपने घर से निकलना वह चिड़िया वह बुलबुल वह तितली पकड़ना
गुड़िया की शादी पर लड़ना झगड़ना वह झूलों से गिरना वह गिरकर संभालना
भुलाए नहीं भूल सकता है कोई वो छोटी सी रातें वो लंबी कहानी
वह कागज की कश्ती वो बारिश का पानी....
आपके साथ घटित हुआ वह लाखों में एक संयोग क्या है?
मेरे माता-पिता सिडनी से 80 किलोमीटर दक्षिण में वॉलोंगोंग नामक शहर में रहते थे। वे एक फ्रीवे के पास रहते थे जो पहाड़ से ऊपर सिडनी तक जाता था। एक दिन जब मैं कुछ दिनों के लिए उनके साथ रह रहा था, सेल फोन के आने से बहुत पहले, एक बहुत ही खराब हालत वाले आदमी ने दरवाजा खटखटाया और सिडनी तक लिफ्ट की व्यवस्था करने के लिए फोन करने को कहा। उसने फोन किया और कहा कि उसे अपनी लिफ्ट का इंतजार करना होगा। हमने उससे पूछा कि क्या उसे भूख लगी है, जो कि उसे लगी हुई थी, इसलिए हमने उसके लिए एक बहुत बड़ा सैंडविच बनाया और उसे पीने के लिए कुछ दिया और वह सिडनी चला गया। हमें बाद में पता चला कि वह मेरे चाचा के पड़ोसी का भाई था, और मेरे चाचा ने यह पता लगा लिया था कि यह मेरे माता-पिता का घर था, जब उनके पड़ोसी के भाई ने घटना के बारे में बताया था। मेरे चाचा जानते थे कि मेरे माता-पिता फ्रीवे के बहुत पास एक सड़क पर रहते थे जो पहाड़ पर जाती थी।
कभी-कभी, क्लास से भागकर दोस्तों के साथ समय बिताना बेहतर होता है, क्योंकि आज, जब मैं पीछे मुड़कर देखता हूँ, तो मुझे कभी भी अंक नहीं हंसाते, लेकिन यादें हंसाती हैं
मेरा बचपन सपनों का घर था जहां मैं रोज दादा-दादी के कहानी सुनकर उन कहानियों में ऐसे खो जाता था मानो उन कहानियों का असली पात्र में ही हूं. बचपन के वह दोस्त जिनके साथ रोज सुबह-शाम खेलते, गांव की गलियों के चक्कर काटते और खेतों में जाकर पंछी उड़ाते.
मेरा बचपन गांव में ही बीता है इसलिए मुझे बचपन की और भी ज्यादा याद आती है बचपन में हम भैंस के ऊपर बैठकर खेत चले जाते थे तो बकरी के बच्चों के पीछे दौड़ लगाते थे. बचपन में सावन का महीना आने पर हम पेड़ पर झूला डाल कर झूला झूलते थे और ठंडी ठंडी हवा का आनंद लेते थे.